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प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए योग की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में तेजी से औद्योगीकीकरण, शहरीकरण और वैश्वीकरण के कारण प्रदूषण की समस्या बढ़ी है| ना केवल वायु प्रदूषण बल्कि जल और भू प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न हुई है | प्रदूषण की समस्या ने कृषि उत्पादों पर भी खासा प्रभाव डाला है और उनकी गुणवत्ता में काफी कमी आई है | साथ ही साथ रासायनिक खादों के अतिरिक्त उपयोग ने कृषि उत्पादों को आवश्यकता से अधिक दूषित कर दिया है | लोगों के बीच प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत और बदलती जीवनशैली के कारण आहार शैली में भी बदलाव आया है | भोजन की आदतें न केवल शहरी बस्तियों में, बल्कि ग्रामीण आबादी में भी बदल गई हैं | ख़राब और दूषित भोजन के कारण शरीर को उचित पोषण नहीं मिल पाता | पोषण के साथ ही पुरातन समय में पुरुष खेती और बाहरी कामों में तथा महिलाएं घरेलु कार्यों में सभी प्रकार के शारीरिक व्यायाम को दिन भर की दिनचर्या में अनुभव कर लेते थे | किन्तु श्रम के मशीनीकरण के साथ, अधिकांश ग्रामीण आबादी जो शारीरिक रूप से बहुत सक्रिय थी, अब कम श्रमसाध्य हो गई है | अस्वास्थ्यकर आहार की खपत और शारीरिक गतिविधियों की कमी स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर रही है | यही खराब पोषण कारण बनता है, एक कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता का, जिससे की शरीर में बिमारियों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ती है, शारीरिक और मानसिक विकास बाधित होता है और व्यक्ति की कार्यक्षमता कम हो जाती है | और इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है कोरोना, जिसने की आज ना जाने कितनों की जीवन लीला समाप्त कर दी | कोरोना का सबसे घातक प्रभाव उन लोगों पर हुआ, जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी और वे किसी न किसी प्रकार के रोगों से ग्रस्त थे|
रोग प्रतिरोधक क्षमता वह यंत्रणा है जो अनेकों प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस (पैथोजेन) के हमले से शरीर को बचाने के लिए शरीर में आवश्यक कोशिकाओं को सक्रिय करने का काम करती है | मोनोसाइट्स, मास्ट सेल्स, न्युट्राफिल्स, स्नोफिल्स, बेसोफिल्स, नेचुरल किलर सेल्स आदि रोग प्रतिरोधक क्षमता की प्रक्रिया में सम्मिलित होनेवाली महत्त्वपूर्ण कोशिकाएं हैं | ये सभी कोशिकाएं मिलकर एक टीम कि तरह कार्य करती हैं| मोनोसाइट्स का काम शरीर के सभी अंगों पर नजर रखना होता है और जैसे ही कोई पैथोजेन शरीर पर हमला करता है तो वह अन्य रोग प्रतिरोधी कोशिकाओं को सक्रिय कर देता है| इसी प्रकार बाकी रोग प्रतिरोधी कोशिकाएं भी अलग अलग तरीकों से शरीर को पैथोजेन के हमलों से बचाने का कार्य करती हैं | इन कोशिकाओं को स्वस्थ बनाये रखने और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाने में हमारे खानपान का तो महत्वपूर्ण योगदान होता ही है लेकिन इसीके साथ योग भी इस काम में बहुत ही कारगर साबित होते हैं | योग हमारे शरीर को बाहर और भीतर से स्वस्थ करने के साथ ही मन और मस्तिष्क को भी मजबूत बनाता है | योग द्वारा शरीर और मस्तिष्क में एक संतुलन का निर्माण होता है जो अनेक प्रकार के तनावों के निराकरण में भी मदद करता है | योग में आसनों के अलावा प्राणायाम और शुद्धि क्रियाओं की भी अहम भूमिका होती है | सबसे पहले योग में आसन से शरीरिक मजबूती प्रदान होती है| विभिन्न प्रकार के आसन शरीर के विभिन्न अंगों और अवयवों को प्रभावित करते हैं | आसन न सिर्फ स्नायुओं पर अपितु शरीर के भीतरी अंगों एंव सभी तंत्रिकाओं पर भी प्रभाव डालते हैं | आसनों के प्रभाव से इन अंगों की कार्यक्षमता बढती है और ये अंग अधिक प्रभावी रूप से कार्य करते हैं | उदाहरण के रूप में भुजंगासन पाचन तंत्र को जागृत करता है और मेरुदंड को लचीला बनाता है | इसी प्रकार सर्वांगासन से मस्तिष्क में रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह बेहतर तरीके से होता है और थायराइड ग्रंथि पर भी दबाव बनता है | आसनों के बाद शुद्धि क्रियाएँ शरीर में एकत्र हुए विकारों, अशुद्धियों एवं विषैले तत्वों को दूर कर शरीर को भीतर से स्वच्छ करती है, विषाक्त पदार्थों का निराकरण करती हैं जिससे वात, पित्त और कफ के त्रिदोषों को संतुलित करने में सहायता मिलती है | इन त्रिदोषों के संतुलन का असर शरीर की कोशिकाओं पर पड़ता है | ये कोशिकाएं स्वस्थ होती हैं और इनकी रोगों के प्रति सतर्कता बढती है | जब शरीर शुद्ध होता है तो रासायनिक घटकों का अनुपात संतुलित रहता है | इससे मस्तिष्क के कामकाज पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और शरीर तथा मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में सहायता मिलती है | उदहारण जलनेति क्रिया नाक की सफाई करती है जिससे श्वसन संबंधी समस्याओं का खतरा कम होता है | इसी प्रकार वस्त्र-धौती अवशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालकर अपच की स्थिति को रोकती है और कफ और पित्त को संतुलित करती है | और अंत में प्राणायाम शरीर और मस्तिष्क के बीच संतुलन बनाने में सहायक है | प्राणायाम द्वारा शरीर में अतिरिक्त ऑक्सीजन का संचार होता है और रक्त में इस अतिरिक्त ऑक्सीजन का शोषण होता है | प्राणायाम का सबसे अधिक प्रभाव आतंरिक मन और मस्तिष्क को स्वस्थ रखने में होता है | स्वस्थ मस्तिष्क पिट्युट्रिक ग्रंथि को नियंत्रित करता है जो अन्य सभी ग्रंथियों को संतुलित करती है जिससे शरीर में किसी भी प्रकार का असंतुलन नहीं होता | उदहारण अनुलोम विलोम प्राणायाम शरीर की प्राण उर्जा को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है तथा मन को शांत कर तनाव को दूर करता है | इसी प्रकार भ्रामरी में भौंरे की तरह आवाज़ निकाली जाती है और इस नादानुसंधान ध्वनि पर ध्यान केंद्रित करने से मस्तिष्क में स्थित पिट्युट्रिक ग्रंथि उत्तेजित होती है और सही रूप से कार्य करती है | इस प्रकार योग के इन त्रिअंगों ( आसन, शुद्धिक्रिया, प्राणायाम ) के सामूहिक अभ्यास से शरीर को बाह्य और भीतरी रूप से एक अलौकिक उर्जा मिलती है | इन त्रिअंगों के साथ योग मुद्राओं का मिलन मस्तिष्क को एकाग्र कर तनावों, अनिंद्रा जैसी समस्याओं के निवारण में सहायक है | और ये सभी मिलकर शरीर को एक मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं, सभी प्रकार के रोगों के लिए शरीर को सतर्क बनाते हैं और उन रोगों की रोकथाम करने के लिए शरीर में आवश्यक एंटीबाडीज का निर्माण करते हैं |
आज योग की विभिन्न विधियों के आधार पर योग की विभिन्न पद्धतियाँ प्रचलित हैं | वास्तव में योग के विभिन्न अंगों का प्रतिदिन अभ्यास शरीर को एक ऐसी रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान कर सकता है जिससे व्यक्ति वर्तमान समय के सभी रोगों, मानसिक तनावों, प्रदूषण से उत्पन्न विकारों, असंतुलित आहारों के प्रभावों आदि से दूर रह सकता है | आज योग एक सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक जीवन शैली के रूप में प्रमाणित हो चुका है और विश्व भर में लोग अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए योग पद्धति को बड़े पैमाने पर अपना रहे हैं |
Mon Nov 13, 2023